मेरे आंसुओं की कीमत नहीं की तुमने कभी,
तो अब रोकर किसको दिखाऊ मैं?
आज भी वैसा ही हूँ मैं बस फर्क इतना है,
कि अब जब दर्द होता है तो लिख लेता हूँ मैं।
-आलोक
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फिरसे मेरा वक़्त आयेगा।
आसमान से तोड़ने के बाद,
ज़मीन से जोड़ जायेगा।
बदलती कर्वटों को मेरी,
नीन्द के झोंखे दे जायेगा।
मेरे अरमानों के गुब्बारे में,
हक़ीक़त की हवा भर जाएगा।
फिरसे मेरा वक़्त आयेगा।
इस सुलगती चिंगारी को मेरी,
वो आग में बदल जाएगा।
तड़पती हुई अन्गड़ाईयों को मेरी,
सुकून से भर जाएगा।
फिरसे मेरा वक़्त आयेगा।
रोना, किसकिसाना था एक सपना,
भरने वो खुशी का समन्दर आयेगा।
फिरसे मेरी मिन्नतों और विनतियों को,
आदेश ही समझा जाएगा।
फिरसे मेरा वक़्त आयेगा।
-आलोक